ग़ज़ल
मेरे कुछ दोस्तों की दोस्ती , यूँ खूबसूरत है |
कि- अब मुझको न गैरों की, न दुश्मन की ज़रुरत है ||
मेरे दिल पर बहुत अहसान हैं इन खास अपनों के,
जो दिल में ज़ख्म के ये फूल हैं, इनकी इनायत है ||
मुहब्बत को मुहब्बत से भरोसा प्यार का देकर,
दिलों से खेलकर दिल तोडना, इनकी रिवायत है ||
उन्हें मिलती हैं खुशियाँ, क़त्ल करने के तमद्दुन में,
मगर मेरी तमद्दुन तो, मोहब्बत की इबादत है ||
वो दिलवर हैं मेरे दिल के, वो खुश हैं गर तो मैं खुश हूँ,
मेरे जानिब तो उनको क़त्ल की भी, हाँ, इजाज़त है ||
वफ़ा या दोस्ती, इंसानियत या प्यार का मज़हब,
मुझे है इश्क इन लब्जों से और उनको शिकायत है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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