Wednesday, October 20, 2010

GHAZAL - 5

                           ग़ज़ल

मेरे   कुछ   दोस्तों   की   दोस्ती ,  यूँ   खूबसूरत   है |
कि- अब मुझको न गैरों की, न दुश्मन की  ज़रुरत है ||


मेरे  दिल  पर बहुत अहसान हैं इन  खास अपनों  के, 
जो  दिल  में  ज़ख्म  के ये फूल हैं, इनकी इनायत है ||


मुहब्बत  को  मुहब्बत  से  भरोसा  प्यार  का  देकर,
दिलों  से  खेलकर  दिल  तोडना,  इनकी  रिवायत है || 


उन्हें  मिलती  हैं  खुशियाँ, क़त्ल करने के तमद्दुन में,
मगर  मेरी  तमद्दुन   तो,  मोहब्बत  की  इबादत  है ||


वो दिलवर हैं मेरे दिल के, वो खुश हैं गर तो मैं खुश हूँ,
मेरे जानिब  तो उनको क़त्ल की भी, हाँ, इजाज़त है ||


वफ़ा  या  दोस्ती,  इंसानियत  या  प्यार  का  मज़हब,
मुझे  है  इश्क  इन लब्जों से और उनको शिकायत है ||


             रचनाकार - अभय दीपराज

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