Wednesday, May 4, 2011

Ghazal -26

                      ग़ज़ल

दोस्तों,   फिर   आदमीयत  को,  ज़रा  आवाज़  दो |
गीत एक तुम भी उठा लो, मुझको भी एक साज़ दो ||

माँ  बुलाती  है  हमें  फिर ,  अपनी  रक्षा  के  लिये,
फिर से अपनी शक्ति को तुम,  एक नया परवाज़ दो ||

धर्म  ने  फिर  से  पि
ता  बनकर,   पुकारा  है   हमें,
आओ,  इसके  माँ  को  फिर,   माँ  का  अंदाज़  दो ||

डस रहा है आजकल,  अन्याय  जग  में  न्याय को,
न्याय की उजली सुबह  को,  फिर नया आगाज़ दो ||

फ़र्ज़  के  फरमान  से  हम,  बे-खबर  हैं  आजकल,
फ़र्ज़  को  फिर  से  पुकारो,  और उसे फिर ताज दो ||

आजकल अधिकार का,  हमको  नशा  सा हो गया,
इस  ज़हर  को अब न ज़्यादा, और ज़्यादा नाज़ दो ||

आदमी   हैं   हम,   हमारी  राह  है-   इन्सानियत,
आज  के  इस  वक़्त  को  फिर, ये दिशाएँ आज दो ||
                 रचनाकार - अभय दीपराज