Sunday, April 15, 2012

अभय कान्त झा दीपराज कृत - मैथिली ग़ज़ल

                    ग़ज़ल

हम अहाँ सँ मधुर मिलन के, सपना देखैत रहलौं ||
जखन अहाँ सँ भेंट होयत, की कहब सोचैत रहलौं ||


नहिं बूझल छल प्रेमक भाषा, परिभाषा की करू अब.?
नेहक पाती पर ओहिना किछु लिखैत - कटैत रहलौं ||


प्रेमक चन्दन, मोनक भीतर, गमकल - भाँग बनल,
जकर नशा हम मोने - मोने, पीबैत - बह्कैत रहलौं ||


मोनक मधुबन में, शैफाली, लुधकल प्रेमक फूल सँ,
जेहि के तेज सुगंधी में हम, रचल - गमकैत रहलौं ||


दीपक बनिकय इन्तिज़ार जे केलौं , से अब कहू कोना ?
घायल बनिकय कोना प्रेम में, मरैत - जीवैत रहलौं ||


आबि गेलों जे अहाँ आइ अब नहिं कोनो संताप रहल,
बिसरि गेलौं ओ दुःख जे पहिने भोगैत - सहैत रहलौं ||

                       रचनाकार - अभय दीपराज