Friday, October 22, 2010

GHAZAL - 15

            ग़ज़ल

हर  तरफ  अब  विनाश  है यारो |
आज   हर   घर  उदास  है  यारो ||

रौशनी   है   मगर   अन्धेरा   है,
इतना  धुँधला  प्रकाश  है  यारो  ||

आदमी  जानवर  बना   है   अब,
जाने ये क्या विकास...? है यारो ||

हर  तरफ  मौत  का है, सन्नाटा,
हर  तरफ   लाश-लाश  है  यारो ||

हम वहाँ जा रहे हैं जिस पथ पर,
एक प्रलय का  निवास  है  यारो ||

सोचना  अब  नहीं  रहा  बस में,
हम    यूँ   बद-हवास   हैं   यारो ||

यूँ   तो   हँस  रहे   हैं  ऊपर  से,
किन्तु ये  दिल  हताश  है  यारो ||

हम हैं भीतर से उतने ही कड़वे,
मुँह में जितनी मिठास  है यारो ||

वक़्त का ये वो मोड़ है जिस पर,
दर्द   ही   आस-पास   है   यारो ||


रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 14

                     ग़ज़ल

आज  आशा  के  सितारे,  छिप  गए  आकाश में |
घुट  रही  है  ज़िन्दगी  की  साँस, सड़ती लाश में ||

आदमी  पर  पाशविकता  का  शिकंजा  यूँ कसा,
जिस तरह अजगर जकड़ता है किसी को पाश में ||

हँस  रहे 
हैं हम  छिपाने  के  लिए  गम - दर्द को,
किन्तु ये गम घुल गया है हर किसी उच्छवास में ||

हीन  गुरुता  से  हुए गुरु,  चोर  के 
सिर  ताज  है,
आज रक्षक बन के  भक्षक,  डस  रहे  आवास  में ||


बेच  कर  इंसानियत  हम,   हो  गए  यूँ  जानवर,
खून  का  व्यापार  है,  हर वास और अधिवास में ||

दोस्ती  में  दुश्मनी  से,  आज  खतरा  बढ़  गया,
अब तो बस केवल ज़हर है, हास और परिहास में ||

हमने चाहा देव  बनना,  किन्तु  दानव  बन  गए,
घुन  लगा यूँ आदमी की आश 
और अभिलाष में ||

फिर वही युग आ गया है,  धर्म  के  एक युद्ध का,
राज्य  है  धृतराष्ट्र  का  और  धर्म  है  वनवास में ||

सत्यता और धर्म ही बस,  आज  तो  हथियार  है,
जो हमें ले जाएगा
अब,  नाश  से  अ-विनाश  में ||
 
                  रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 13

                 ग़ज़ल

आजकल  कुर्सी  पे  जो  है,   शाह   है |
उसके  ताक़त  की,  न  कोई  थाह  है ||

पास  है  अधिकार, तो   खोलो   जुबां,
वरना, मत बोलो, जो दिल की चाह है ||

आज  तो  आराध्य  बस,  तलवार  है,
प्यार  और  इंसानियत  तो,  आह  है ||

कह रहा है युग, कि - उनका नाश हो,
जिनका पथ आदर्श की,
कोई  राह  है ||

आज के युग - धर्म  की  यह  जान है,
आदमी   को   आदमी    से   डाह   है ||


    रचनाकार - अभय दीपराज