ग़ज़ल
हर तरफ अब विनाश है यारो |
आज हर घर उदास है यारो ||
रौशनी है मगर अन्धेरा है,
इतना धुँधला प्रकाश है यारो ||
आदमी जानवर बना है अब,
जाने ये क्या विकास...? है यारो ||
हर तरफ मौत का है, सन्नाटा,
हर तरफ लाश-लाश है यारो ||
हम वहाँ जा रहे हैं जिस पथ पर,
एक प्रलय का निवास है यारो ||
सोचना अब नहीं रहा बस में,
हम यूँ बद-हवास हैं यारो ||
यूँ तो हँस रहे हैं ऊपर से,
किन्तु ये दिल हताश है यारो ||
हम हैं भीतर से उतने ही कड़वे,
मुँह में जितनी मिठास है यारो ||
वक़्त का ये वो मोड़ है जिस पर,
दर्द ही आस-पास है यारो ||
रचनाकार - अभय दीपराज
Friday, October 22, 2010
GHAZAL - 14
ग़ज़ल
आज आशा के सितारे, छिप गए आकाश में |
घुट रही है ज़िन्दगी की साँस, सड़ती लाश में ||
आदमी पर पाशविकता का शिकंजा यूँ कसा,
जिस तरह अजगर जकड़ता है किसी को पाश में ||
हँस रहे हैं हम छिपाने के लिए गम - दर्द को,
किन्तु ये गम घुल गया है हर किसी उच्छवास में ||
हीन गुरुता से हुए गुरु, चोर के सिर ताज है,
आज रक्षक बन के भक्षक, डस रहे आवास में ||
बेच कर इंसानियत हम, हो गए यूँ जानवर,
खून का व्यापार है, हर वास और अधिवास में ||
दोस्ती में दुश्मनी से, आज खतरा बढ़ गया,
अब तो बस केवल ज़हर है, हास और परिहास में ||
हमने चाहा देव बनना, किन्तु दानव बन गए,
घुन लगा यूँ आदमी की आश और अभिलाष में ||
फिर वही युग आ गया है, धर्म के एक युद्ध का,
राज्य है धृतराष्ट्र का और धर्म है वनवास में ||
सत्यता और धर्म ही बस, आज तो हथियार है,
जो हमें ले जाएगा अब, नाश से अ-विनाश में ||
रचनाकार - अभय दीपराज
आज आशा के सितारे, छिप गए आकाश में |
घुट रही है ज़िन्दगी की साँस, सड़ती लाश में ||
आदमी पर पाशविकता का शिकंजा यूँ कसा,
जिस तरह अजगर जकड़ता है किसी को पाश में ||
हँस रहे हैं हम छिपाने के लिए गम - दर्द को,
किन्तु ये गम घुल गया है हर किसी उच्छवास में ||
हीन गुरुता से हुए गुरु, चोर के सिर ताज है,
आज रक्षक बन के भक्षक, डस रहे आवास में ||
बेच कर इंसानियत हम, हो गए यूँ जानवर,
खून का व्यापार है, हर वास और अधिवास में ||
दोस्ती में दुश्मनी से, आज खतरा बढ़ गया,
अब तो बस केवल ज़हर है, हास और परिहास में ||
हमने चाहा देव बनना, किन्तु दानव बन गए,
घुन लगा यूँ आदमी की आश और अभिलाष में ||
फिर वही युग आ गया है, धर्म के एक युद्ध का,
राज्य है धृतराष्ट्र का और धर्म है वनवास में ||
सत्यता और धर्म ही बस, आज तो हथियार है,
जो हमें ले जाएगा अब, नाश से अ-विनाश में ||
रचनाकार - अभय दीपराज
GHAZAL - 13
ग़ज़ल
आजकल कुर्सी पे जो है, शाह है |
उसके ताक़त की, न कोई थाह है ||
पास है अधिकार, तो खोलो जुबां,
वरना, मत बोलो, जो दिल की चाह है ||
आज तो आराध्य बस, तलवार है,
प्यार और इंसानियत तो, आह है ||
कह रहा है युग, कि - उनका नाश हो,
जिनका पथ आदर्श की, कोई राह है ||
आज के युग - धर्म की यह जान है,
आदमी को आदमी से डाह है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
आजकल कुर्सी पे जो है, शाह है |
उसके ताक़त की, न कोई थाह है ||
पास है अधिकार, तो खोलो जुबां,
वरना, मत बोलो, जो दिल की चाह है ||
आज तो आराध्य बस, तलवार है,
प्यार और इंसानियत तो, आह है ||
कह रहा है युग, कि - उनका नाश हो,
जिनका पथ आदर्श की, कोई राह है ||
आज के युग - धर्म की यह जान है,
आदमी को आदमी से डाह है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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