Friday, October 22, 2010

GHAZAL - 15

            ग़ज़ल

हर  तरफ  अब  विनाश  है यारो |
आज   हर   घर  उदास  है  यारो ||

रौशनी   है   मगर   अन्धेरा   है,
इतना  धुँधला  प्रकाश  है  यारो  ||

आदमी  जानवर  बना   है   अब,
जाने ये क्या विकास...? है यारो ||

हर  तरफ  मौत  का है, सन्नाटा,
हर  तरफ   लाश-लाश  है  यारो ||

हम वहाँ जा रहे हैं जिस पथ पर,
एक प्रलय का  निवास  है  यारो ||

सोचना  अब  नहीं  रहा  बस में,
हम    यूँ   बद-हवास   हैं   यारो ||

यूँ   तो   हँस  रहे   हैं  ऊपर  से,
किन्तु ये  दिल  हताश  है  यारो ||

हम हैं भीतर से उतने ही कड़वे,
मुँह में जितनी मिठास  है यारो ||

वक़्त का ये वो मोड़ है जिस पर,
दर्द   ही   आस-पास   है   यारो ||


रचनाकार - अभय दीपराज

No comments:

Post a Comment