ग़ज़ल
हर तरफ अब विनाश है यारो |
आज हर घर उदास है यारो ||
रौशनी है मगर अन्धेरा है,
इतना धुँधला प्रकाश है यारो ||
आदमी जानवर बना है अब,
जाने ये क्या विकास...? है यारो ||
हर तरफ मौत का है, सन्नाटा,
हर तरफ लाश-लाश है यारो ||
हम वहाँ जा रहे हैं जिस पथ पर,
एक प्रलय का निवास है यारो ||
सोचना अब नहीं रहा बस में,
हम यूँ बद-हवास हैं यारो ||
यूँ तो हँस रहे हैं ऊपर से,
किन्तु ये दिल हताश है यारो ||
हम हैं भीतर से उतने ही कड़वे,
मुँह में जितनी मिठास है यारो ||
वक़्त का ये वो मोड़ है जिस पर,
दर्द ही आस-पास है यारो ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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