ग़ज़ल
आजकल कुर्सी पे जो है, शाह है |
उसके ताक़त की, न कोई थाह है ||
पास है अधिकार, तो खोलो जुबां,
वरना, मत बोलो, जो दिल की चाह है ||
आज तो आराध्य बस, तलवार है,
प्यार और इंसानियत तो, आह है ||
कह रहा है युग, कि - उनका नाश हो,
जिनका पथ आदर्श की, कोई राह है ||
आज के युग - धर्म की यह जान है,
आदमी को आदमी से डाह है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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