Friday, October 22, 2010

GHAZAL - 13

                 ग़ज़ल

आजकल  कुर्सी  पे  जो  है,   शाह   है |
उसके  ताक़त  की,  न  कोई  थाह  है ||

पास  है  अधिकार, तो   खोलो   जुबां,
वरना, मत बोलो, जो दिल की चाह है ||

आज  तो  आराध्य  बस,  तलवार  है,
प्यार  और  इंसानियत  तो,  आह  है ||

कह रहा है युग, कि - उनका नाश हो,
जिनका पथ आदर्श की,
कोई  राह  है ||

आज के युग - धर्म  की  यह  जान है,
आदमी   को   आदमी    से   डाह   है ||


    रचनाकार - अभय दीपराज

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