Friday, March 18, 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली ग़ज़ल -
                         ग़ज़ल
मोन  प्रपंच  पाप  सँ  दूषित,  भाषण   जन - समुदाय   के |
कोना  एहन  नायक  समाज  में,  परचम  बनता न्याय के ||

कथनी  में  आदर्श,  कलंकित  करनी  सँ  नफरत  के  पात्र,
कोना  समाज  एहन  व्यक्ति  के,  शत्रु  कहय  अन्याय   के ||

किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत   में   हारव   निश्चित,   दानव   के   पर्याय   के ||

धर्म, सत्य  और  न्याय-मनुजता,  नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के ||

धर्म  अपन  अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि   नैं  पावय  क्यों  कपूत  के  जननी  अपना  माय  के ||

आदर्शक  पथ  पकडि 
चलू   और  करैत  रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य  इहय  बस  सर्वोत्तम  अछि,  बुझू हमर अभिप्राय के ||
                          रचनाकार - अभय दीपराज

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