Monday, October 10, 2011

GHAZAL - 126

अभय कान्त झा दीपराज कृत -
                       ग़ज़ल

मुझे  बेचैन   करके,  बनके  बुत  वो आज चुप -  चुप हैं |
मैं  सन्नाटे  में  ग़ुम  हूँ,  मेरे दिल के साज़ चुप - चुप हैं ||

वो  बनके  प्यार  का  तूफ़ान,  इस  पहलू  में  आये  थे,
रही दो दिन मुहब्बत,  लुट गया दिल, ताज चुप -चुप हैं ||

जलाकर  आशियाँ  अपना,  रहो  आकर  मेरे  दिल  में,
कहा था जिसने कल, हाँ आज, वो ही नाज़ चुप - चुप हैं ||

हज़ारों  बार  मरकर  भी,  जो  संग  जीने  के  वादे  थे,
हुए  दो  पल  में  वादे - ख़ाक,  अब आवाज़ चुप - चुप हैं ||

खुदारा   इन   हसीनों  की,  मेहरबानी  का  सच   ये  है -
झुकी  गर्दन  पे  भी  तलवार  हैं  नाराज़,   चुप - चुप  हैं ||

वफाओं   को   मेरी   वो   तौलते   हैं   बेवफा   बनकर,
गज़ब  दिलक़श  मेरे कातिल के ये अंदाज़,  चुप-चुप हैं ||

उठाया  जो  कदम  हमने,   नशे  में  कुछ  नहीं  सोचा,
यही  अंजाम  था  उसका  तो  अब  आगाज़ चुप-चुप हैं ||

खता   है   ये   मेरी   मैंने   मुहब्बत  की   खता   की   है,
नहीं  शिकवा  जो  साँसें  दर्द  से  नासाज़  चुप - चुप  हैं ||

                        रचनाकार - अभय दीपराज  

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