Monday, March 21, 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत -

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत -५-
  बेटी   के   दहेज़  के भार ..............
बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

जे     बेटी     जननी    समाज    के,    मूल    प्रेम - स्नेह    के |
अपमानक   हम   पातक   लैत   छी,   ओहि  बेटी  के  देह  के ||

अपन   मान   सँ  हम   अविवेकी,  अपने  कयलौं   दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || १ ||

बड़  ज्ञानी,  बड़  शिष्टाचारी,  मानव  बनि   हम   जन्म   लेलौं |
नीति - न्याय  के  परिभाषा  हम  कयलौं,  बड़  सद्कर्म केलों ||
सब   यश   पर   भारी   ई अपयश,  संतानक  कयलौं व्यापार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || २ ||

जेहि   बेटी   में   दुर्गा - कमला   और   सीता   के   वास  अहि |
ओ   बेटी   अपना   नैहर   पर   बोझ   बनल,   उपहास   अहि ||
एहन  पातकी - पापी  छी  हम,  हाँ,  एहि पातक पर धिक्कार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ३ ||

बेटी   के   अपमानक   ई   विष,   उपटा   देलक   जों  ई  फूल |
हमर - अहाँ  के,  सबहक  आँगन  में  नाचत  विनाश के शूल ||
संकट  ई  गंभीर  भेल  अब,  करिऔ  एहि  पर  तुरत  विचार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार || ४ ||

आइ अगर ई व्यथा हमर अछि,  काल्हि अहाँ के  ई अभिशाप |
एक - एक कय पेरि रहल अछि,  सबके  एहि  ज्वाला के दाप ||
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार
|
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई  अत्याचार || ५ ||

बनल   असह्य   संताप   समाजक,   बेटी   के   दहेज़  के भार |
भैया - बाबू   गोर   लगैत   छी,    बंद    करू    ई    अत्याचार ||

                                रचनाकार- अभय दीपराज  

Friday, March 18, 2011

अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली ग़ज़ल -
                         ग़ज़ल
मोन  प्रपंच  पाप  सँ  दूषित,  भाषण   जन - समुदाय   के |
कोना  एहन  नायक  समाज  में,  परचम  बनता न्याय के ||

कथनी  में  आदर्श,  कलंकित  करनी  सँ  नफरत  के  पात्र,
कोना  समाज  एहन  व्यक्ति  के,  शत्रु  कहय  अन्याय   के ||

किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत   में   हारव   निश्चित,   दानव   के   पर्याय   के ||

धर्म, सत्य  और  न्याय-मनुजता,  नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के ||

धर्म  अपन  अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि   नैं  पावय  क्यों  कपूत  के  जननी  अपना  माय  के ||

आदर्शक  पथ  पकडि 
चलू   और  करैत  रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य  इहय  बस  सर्वोत्तम  अछि,  बुझू हमर अभिप्राय के ||
                          रचनाकार - अभय दीपराज