अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली गीत -५-
बेटी के दहेज़ के भार ..............
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
जे बेटी जननी समाज के, मूल प्रेम - स्नेह के |
अपमानक हम पातक लैत छी, ओहि बेटी के देह के ||
अपन मान सँ हम अविवेकी, अपने कयलौं दुर्व्यवहार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || १ ||
बड़ ज्ञानी, बड़ शिष्टाचारी, मानव बनि हम जन्म लेलौं |
नीति - न्याय के परिभाषा हम कयलौं, बड़ सद्कर्म केलों ||
सब यश पर भारी ई अपयश, संतानक कयलौं व्यापार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || २ ||
जेहि बेटी में दुर्गा - कमला और सीता के वास अहि |
ओ बेटी अपना नैहर पर बोझ बनल, उपहास अहि ||
एहन पातकी - पापी छी हम, हाँ, एहि पातक पर धिक्कार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ३ ||
बेटी के अपमानक ई विष, उपटा देलक जों ई फूल |
हमर - अहाँ के, सबहक आँगन में नाचत विनाश के शूल ||
संकट ई गंभीर भेल अब, करिऔ एहि पर तुरत विचार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ४ ||
आइ अगर ई व्यथा हमर अछि, काल्हि अहाँ के ई अभिशाप |
एक - एक कय पेरि रहल अछि, सबके एहि ज्वाला के दाप ||
सबहक गर्दन, शान्ति और सुख, काटि रहल अछि ई तलवार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार || ५ ||
बनल असह्य संताप समाजक, बेटी के दहेज़ के भार |
भैया - बाबू गोर लगैत छी, बंद करू ई अत्याचार ||
रचनाकार- अभय दीपराज
Monday, March 21, 2011
Friday, March 18, 2011
अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली ग़ज़ल -
ग़ज़ल
मोन प्रपंच पाप सँ दूषित, भाषण जन - समुदाय के |
कोना एहन नायक समाज में, परचम बनता न्याय के ||
कथनी में आदर्श, कलंकित करनी सँ नफरत के पात्र,
कोना समाज एहन व्यक्ति के, शत्रु कहय अन्याय के ||
किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत में हारव निश्चित, दानव के पर्याय के ||
धर्म, सत्य और न्याय-मनुजता, नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के ||
धर्म अपन अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि नैं पावय क्यों कपूत के जननी अपना माय के ||
आदर्शक पथ पकडि चलू और करैत रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य इहय बस सर्वोत्तम अछि, बुझू हमर अभिप्राय के ||
रचनाकार - अभय दीपराज
ग़ज़ल
मोन प्रपंच पाप सँ दूषित, भाषण जन - समुदाय के |
कोना एहन नायक समाज में, परचम बनता न्याय के ||
कथनी में आदर्श, कलंकित करनी सँ नफरत के पात्र,
कोना समाज एहन व्यक्ति के, शत्रु कहय अन्याय के ||
किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत में हारव निश्चित, दानव के पर्याय के ||
धर्म, सत्य और न्याय-मनुजता, नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के ||
धर्म अपन अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि नैं पावय क्यों कपूत के जननी अपना माय के ||
आदर्शक पथ पकडि चलू और करैत रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य इहय बस सर्वोत्तम अछि, बुझू हमर अभिप्राय के ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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