Thursday, October 21, 2010

GHAZAL - 12

                           ग़ज़ल

कहती है मुझे पागल दुनिया,  मैं भटका  हुआ  इंसान  जो  हूँ |
दर्द भरी एक  नज़्म  जो हूँ,  एक  बिना  बिका  ईमान  जो  हूँ ||

वो  वारिस  मुझे  बनाते  हैं,  अपनी  नापाक  तमद्दन  का,
नाराज़ हैं मेरी  फितरत पर , मैं   उनका  भी  अरमान  जो  हूँ ||

वो  मुझको  समझ  कर  के दुश्मन,  बन  बैठे  हैं  मेरे  दुश्मन,
राहों  के  खारों  के  लिये  मैं,  मौत  का  एक  फरमान  जो हूँ ||

कर लूँगा सफ़र मैं मंजिल तक,  हर ठोकर  भी  मैं  सह  लूँगा,
पर, राह नहीं देती दुनिया,  मैं   उसके   लिये   तूफ़ान  जो  हूँ ||

तकदीर से शिकवा कोई नहीं, मालिक से शिकायत है लेकिन,
राही मैं सही,  कोई  बात  नहीं,  पर  राहों  से  अंजान  जो  हूँ ||

                           रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 11

       ग़ज़ल

दुनिया  मुझसे  कतराती  है,  शायद  मैं  पागल  लगता  हूँ |
बच  कर  वो  मुझ  से चलते हैं, मैं उनको काजल लगता हूँ ||

अक्सर  लोगों  ने  मुझको  यूँ ,  नफरत  से भरकर देखा है ,
मैं  सावन  की घटा नहीं हूँ ,  बे - मौसम  बादल  लगता  हूँ ||

मेरे  दिल  के  कुछ  ज़ख्मों  ने,  मुझको लहूलुहान किया है,
इसीलिये मैं कुछ उदास हूँ , और  रोता  सा  कल लगता  हूँ ||

मुझे समझना और समझाना, बहुत बोझ सा लगता है अब,
क्योंकि  इन  दोनों  रूपों  में ,  मैं एक झूठा छल  लगता हूँ ||

मेरी  ये  चुभती  खामोशी,   उस  चुभते  गम  से  बेहतर है,
जिसमें  मैं  गर्जन  करता  सा  मैला - खारा जल लगता हूँ ||

तुम भी मुझ से बच कर रहना,  मैं एक  ज़हरीला  कतरा हूँ ,
इसीलिये तो मैं  दुनिया  को, एक कड़वा सा फल लगता हूँ ||


                         रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 10

                                  ग़ज़ल

गिर  गया  है  आदमी  यूँ  आज  अपनी  ज़ात से |
फिर  रहा  है  हर  कदम पर, वो ज़ुबां से, बात से ||

सत्य  से  अब  हो  गयी  है,  शत्रुता  इंसान  की,
इसलिए, वो  वार  इस  पर  कर  रहा  है, घात से ||

सच, परीक्षा  की  घड़ी  है,  आजकल  ये  धर्म की,
लड़  रहा  है  धर्म  जिसमें, आज  काली  रात  से ||

झूठ  से  और  पाप  से  है,  प्यार  यूँ  इंसान  को,
गूँज  युग  को  दे  रहा  वो, अब इन्हीं नगमात से ||

विश्वविजयी मनुज कल का, यूँ नपुंसक हो गया,
लग  रहा  है  भय उसे  अब,  युद्ध  के  हालात  से ||

आज की यह शान्ति, कल की क्रांति का संकेत है,
जन्म  जो  लेगी,  पराजित पक्ष  के  प्रतिघात से ||


               रचनाकार - अभय दीपराज