Monday, October 25, 2010

GHAZAL - 25

                ग़ज़ल

सोचते   थे   ज़माना    सँभल   जायेगा |
वक़्त  के  साथ  इन्सां   बदल   जायेगा ||

आग   चारों   तरफ   यूँ   बरसने   लगी,
लग  रहा  है  ज़हां  सारा  जल  जायेगा  ||

खो  गया  आदमी,  आदमीयत  है  गुम,
नाम  बाकी  है  जो  हमको छल जायेगा ||

दाग  है,  दाग  है,  दाग  है,  हर  कशिश,
एक  ज़हर  है  जो  साँसों में पल जायेगा ||

देखकर  ये  समां,  रो  रहा साज़ -ए-दिल,

न खबर थी क़ि- कल सा न कल आयेगा ||
     
       रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 24

     ग़ज़ल - 24

आजकल धनवान ही भगवान् है |
जानवर, धन के बिना, इंसान है ||

खूबियाँ अब और कोई कुछ नहीं,
देव बनकर पूज रहा, धनवान है ||

बिक रहा है न्याय भी, बाज़ार में,
जितना धन है पास, उतना मान है ||

अक्ल की ताक़त यहाँ अब कुछ नहीं,
पैसे वाला,   मूर्ख भी,  विद्वान् है ||

रो रहा अब ज्ञान का साधक यहाँ,
धन से शासन कर रहा अज्ञान है ||

जल रहा है भूख से और धूप से,
आदमीयत पर जिसे, अभिमान है ||

धन बना है धर्म और आराध्य अब,
धर्म सहता हर घड़ी, अपमान है ||

आज युग गाता है केवल मंत्र ये -
आज धन ही ज्ञान और सम्मान है ||

रचनाकार- अभय दीपराज

GHAZAL - 23

                  ग़ज़ल

प्यार  जताकर  धोखा  देना अब  जग  का  दस्तूर है |
पाक जिगर  इन्सां दुनिया  में अब बेहद  मजबूर  है ||

आस्तीन  में  छुरा  छिपाये, चहरे  पर मुस्कान लिये,
बद्जातों   और   गद्दारों   से   हर  कोना    भरपूर  है ||

अधिकारों  की  ताक़त  रखने वालों का मल चाट रहे,
मानवता  मर  गयी,  स्वार्थ से घृणित आत्मा चूर है ||

विष से ज़्यादा हुआ विषैला अमृत  अब  विश्वास का,
धूर्त  और  मक्कारों  का  सिर  आज बहुत मगरूर है ||

हर  रिश्ते  का  सौदा करना अब रिश्तों का धर्म हुआ,
सत्य - धर्म से  मानवता  की  आत्मा  अब  यूँ दूर है ||

मृत्यु दंड का पुरस्कार है, धर्म - सत्य के पथिकों को,
जीवन  उसका  है -  अधर्म  को नमन जिसे मंज़ूर है
||
                   
                   रचनाकार - अभय दीपराज  

GHAZAL - 22

                       ग़ज़ल

प्यार  मुहब्बत  गर  हसरत  है,  हमें प्यार बरसाना होगा |
नफरत करने वालों को बस, नफरत का फल खाना होगा ||

मेरी मौत है मुमकिन लेकिन, मानवता की ज़ात अमर है,
मेरे  बाद  भी  इस  दुनिया  में,  मेरा  ये  अफ़साना  होगा ||

आज  जिसे  रौंदा  है  तूने,  ये सच  है  कल  उसका होगा,
शायद  कल  तेरी  हस्ती  के  दम  से  जग  बेगाना  होगा ||

खुद  को  गगन  समझने  वाले,  ज़र्रों  की  तौहीन  न कर,
ढक   देगा  वो  तुझे  धूल  से,  गर  तूफां   को आना होगा ||

हक  है  तुमको,  प्यार  करो  या  नफरत  बाँटो दुनिया में,
लेकिन,  तुम  जो  दोगे वो ही दुनिया  का  नजराना होगा ||

लिखा गया है यही अभी तक ,  यही कहा और सूना गया,
प्यार  बाँटने  वाला  अपना  और   दुश्मन  बेगाना  होगा  ||
                          रचनाकार - अभय दीपराज

GHAZAL - 21

                       ग़ज़ल

अंजुली  में  ले  के  चलिये  प्यार  अमृत  की तरह |
कीजिये न विकृत, मानवता को, विकृति की तरह ||

क्यों है तुमको...? आज भोली शक्ल से यूँ दुश्मनी,
दोस्त, ये तो शक्ल है एक दोस्त आकृति की तरह ||

राह  पर  चलना  है   अपना   फ़र्ज़,  ये  करते  रहो,
आप क्यूँ यूँ रुक गए हैं ?  आज विस्मित की तरह ||

आप  का  विश्वास  है  यदि  धर्म  के  अस्तित्व  में,
इस  लहर  को  आइये,  फैलायें  जागृति  की तरह ||


भोग  करने  से  बड़ा  सुख,  भोग  बन  जाने में है,
इसमें है एक अनवरत सुख, गूढ़ आवृति की तरह ||

                रचनाकार - अभय दीपराज