ग़ज़ल
सोचते थे ज़माना सँभल जायेगा |
वक़्त के साथ इन्सां बदल जायेगा ||
आग चारों तरफ यूँ बरसने लगी,
लग रहा है ज़हां सारा जल जायेगा ||
खो गया आदमी, आदमीयत है गुम,
नाम बाकी है जो हमको छल जायेगा ||
दाग है, दाग है, दाग है, हर कशिश,
एक ज़हर है जो साँसों में पल जायेगा ||
देखकर ये समां, रो रहा साज़ -ए-दिल,
न खबर थी क़ि- कल सा न कल आयेगा ||
रचनाकार - अभय दीपराज
Monday, October 25, 2010
GHAZAL - 24
ग़ज़ल - 24
आजकल धनवान ही भगवान् है |
जानवर, धन के बिना, इंसान है ||
खूबियाँ अब और कोई कुछ नहीं,
देव बनकर पूज रहा, धनवान है ||
बिक रहा है न्याय भी, बाज़ार में,
जितना धन है पास, उतना मान है ||
अक्ल की ताक़त यहाँ अब कुछ नहीं,
पैसे वाला, मूर्ख भी, विद्वान् है ||
रो रहा अब ज्ञान का साधक यहाँ,
धन से शासन कर रहा अज्ञान है ||
जल रहा है भूख से और धूप से,
आदमीयत पर जिसे, अभिमान है ||
धन बना है धर्म और आराध्य अब,
धर्म सहता हर घड़ी, अपमान है ||
आज युग गाता है केवल मंत्र ये -
आज धन ही ज्ञान और सम्मान है ||
रचनाकार- अभय दीपराज
आजकल धनवान ही भगवान् है |
जानवर, धन के बिना, इंसान है ||
खूबियाँ अब और कोई कुछ नहीं,
देव बनकर पूज रहा, धनवान है ||
बिक रहा है न्याय भी, बाज़ार में,
जितना धन है पास, उतना मान है ||
अक्ल की ताक़त यहाँ अब कुछ नहीं,
पैसे वाला, मूर्ख भी, विद्वान् है ||
रो रहा अब ज्ञान का साधक यहाँ,
धन से शासन कर रहा अज्ञान है ||
जल रहा है भूख से और धूप से,
आदमीयत पर जिसे, अभिमान है ||
धन बना है धर्म और आराध्य अब,
धर्म सहता हर घड़ी, अपमान है ||
आज युग गाता है केवल मंत्र ये -
आज धन ही ज्ञान और सम्मान है ||
रचनाकार- अभय दीपराज
GHAZAL - 23
ग़ज़ल
प्यार जताकर धोखा देना अब जग का दस्तूर है |
पाक जिगर इन्सां दुनिया में अब बेहद मजबूर है ||
आस्तीन में छुरा छिपाये, चहरे पर मुस्कान लिये,
बद्जातों और गद्दारों से हर कोना भरपूर है ||
अधिकारों की ताक़त रखने वालों का मल चाट रहे,
मानवता मर गयी, स्वार्थ से घृणित आत्मा चूर है ||
विष से ज़्यादा हुआ विषैला अमृत अब विश्वास का,
धूर्त और मक्कारों का सिर आज बहुत मगरूर है ||
हर रिश्ते का सौदा करना अब रिश्तों का धर्म हुआ,
सत्य - धर्म से मानवता की आत्मा अब यूँ दूर है ||
मृत्यु दंड का पुरस्कार है, धर्म - सत्य के पथिकों को,
जीवन उसका है - अधर्म को नमन जिसे मंज़ूर है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
प्यार जताकर धोखा देना अब जग का दस्तूर है |
पाक जिगर इन्सां दुनिया में अब बेहद मजबूर है ||
आस्तीन में छुरा छिपाये, चहरे पर मुस्कान लिये,
बद्जातों और गद्दारों से हर कोना भरपूर है ||
अधिकारों की ताक़त रखने वालों का मल चाट रहे,
मानवता मर गयी, स्वार्थ से घृणित आत्मा चूर है ||
विष से ज़्यादा हुआ विषैला अमृत अब विश्वास का,
धूर्त और मक्कारों का सिर आज बहुत मगरूर है ||
हर रिश्ते का सौदा करना अब रिश्तों का धर्म हुआ,
सत्य - धर्म से मानवता की आत्मा अब यूँ दूर है ||
मृत्यु दंड का पुरस्कार है, धर्म - सत्य के पथिकों को,
जीवन उसका है - अधर्म को नमन जिसे मंज़ूर है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
GHAZAL - 22
ग़ज़ल
प्यार मुहब्बत गर हसरत है, हमें प्यार बरसाना होगा |
नफरत करने वालों को बस, नफरत का फल खाना होगा ||
मेरी मौत है मुमकिन लेकिन, मानवता की ज़ात अमर है,
मेरे बाद भी इस दुनिया में, मेरा ये अफ़साना होगा ||
आज जिसे रौंदा है तूने, ये सच है कल उसका होगा,
शायद कल तेरी हस्ती के दम से जग बेगाना होगा ||
खुद को गगन समझने वाले, ज़र्रों की तौहीन न कर,
ढक देगा वो तुझे धूल से, गर तूफां को आना होगा ||
हक है तुमको, प्यार करो या नफरत बाँटो दुनिया में,
लेकिन, तुम जो दोगे वो ही दुनिया का नजराना होगा ||
लिखा गया है यही अभी तक , यही कहा और सूना गया,
प्यार बाँटने वाला अपना और दुश्मन बेगाना होगा ||
रचनाकार - अभय दीपराज
प्यार मुहब्बत गर हसरत है, हमें प्यार बरसाना होगा |
नफरत करने वालों को बस, नफरत का फल खाना होगा ||
मेरी मौत है मुमकिन लेकिन, मानवता की ज़ात अमर है,
मेरे बाद भी इस दुनिया में, मेरा ये अफ़साना होगा ||
आज जिसे रौंदा है तूने, ये सच है कल उसका होगा,
शायद कल तेरी हस्ती के दम से जग बेगाना होगा ||
खुद को गगन समझने वाले, ज़र्रों की तौहीन न कर,
ढक देगा वो तुझे धूल से, गर तूफां को आना होगा ||
हक है तुमको, प्यार करो या नफरत बाँटो दुनिया में,
लेकिन, तुम जो दोगे वो ही दुनिया का नजराना होगा ||
लिखा गया है यही अभी तक , यही कहा और सूना गया,
प्यार बाँटने वाला अपना और दुश्मन बेगाना होगा ||
रचनाकार - अभय दीपराज
GHAZAL - 21
ग़ज़ल
अंजुली में ले के चलिये प्यार अमृत की तरह |
कीजिये न विकृत, मानवता को, विकृति की तरह ||
क्यों है तुमको...? आज भोली शक्ल से यूँ दुश्मनी,
दोस्त, ये तो शक्ल है एक दोस्त आकृति की तरह ||
राह पर चलना है अपना फ़र्ज़, ये करते रहो,
आप क्यूँ यूँ रुक गए हैं ? आज विस्मित की तरह ||
आप का विश्वास है यदि धर्म के अस्तित्व में,
इस लहर को आइये, फैलायें जागृति की तरह ||
भोग करने से बड़ा सुख, भोग बन जाने में है,
इसमें है एक अनवरत सुख, गूढ़ आवृति की तरह ||
रचनाकार - अभय दीपराज
अंजुली में ले के चलिये प्यार अमृत की तरह |
कीजिये न विकृत, मानवता को, विकृति की तरह ||
क्यों है तुमको...? आज भोली शक्ल से यूँ दुश्मनी,
दोस्त, ये तो शक्ल है एक दोस्त आकृति की तरह ||
राह पर चलना है अपना फ़र्ज़, ये करते रहो,
आप क्यूँ यूँ रुक गए हैं ? आज विस्मित की तरह ||
आप का विश्वास है यदि धर्म के अस्तित्व में,
इस लहर को आइये, फैलायें जागृति की तरह ||
भोग करने से बड़ा सुख, भोग बन जाने में है,
इसमें है एक अनवरत सुख, गूढ़ आवृति की तरह ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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