अभय कान्त झा दीपराज कृत -
ग़ज़ल
मुझे बेचैन करके, बनके बुत वो आज चुप - चुप हैं |
मैं सन्नाटे में ग़ुम हूँ, मेरे दिल के साज़ चुप - चुप हैं ||
वो बनके प्यार का तूफ़ान, इस पहलू में आये थे,
रही दो दिन मुहब्बत, लुट गया दिल, ताज चुप -चुप हैं ||
जलाकर आशियाँ अपना, रहो आकर मेरे दिल में,
कहा था जिसने कल, हाँ आज, वो ही नाज़ चुप - चुप हैं ||
हज़ारों बार मरकर भी, जो संग जीने के वादे थे,
हुए दो पल में वादे - ख़ाक, अब आवाज़ चुप - चुप हैं ||
खुदारा इन हसीनों की, मेहरबानी का सच ये है -
झुकी गर्दन पे भी तलवार हैं नाराज़, चुप - चुप हैं ||
वफाओं को मेरी वो तौलते हैं बेवफा बनकर,
गज़ब दिलक़श मेरे कातिल के ये अंदाज़, चुप-चुप हैं ||
उठाया जो कदम हमने, नशे में कुछ नहीं सोचा,
यही अंजाम था उसका तो अब आगाज़ चुप-चुप हैं ||
खता है ये मेरी मैंने मुहब्बत की खता की है,
नहीं शिकवा जो साँसें दर्द से नासाज़ चुप - चुप हैं ||
रचनाकार - अभय दीपराज