Thursday, October 21, 2010

GHAZAL - 10

                                  ग़ज़ल

गिर  गया  है  आदमी  यूँ  आज  अपनी  ज़ात से |
फिर  रहा  है  हर  कदम पर, वो ज़ुबां से, बात से ||

सत्य  से  अब  हो  गयी  है,  शत्रुता  इंसान  की,
इसलिए, वो  वार  इस  पर  कर  रहा  है, घात से ||

सच, परीक्षा  की  घड़ी  है,  आजकल  ये  धर्म की,
लड़  रहा  है  धर्म  जिसमें, आज  काली  रात  से ||

झूठ  से  और  पाप  से  है,  प्यार  यूँ  इंसान  को,
गूँज  युग  को  दे  रहा  वो, अब इन्हीं नगमात से ||

विश्वविजयी मनुज कल का, यूँ नपुंसक हो गया,
लग  रहा  है  भय उसे  अब,  युद्ध  के  हालात  से ||

आज की यह शान्ति, कल की क्रांति का संकेत है,
जन्म  जो  लेगी,  पराजित पक्ष  के  प्रतिघात से ||


               रचनाकार - अभय दीपराज

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