ग़ज़ल
कहती है मुझे पागल दुनिया, मैं भटका हुआ इंसान जो हूँ |
दर्द भरी एक नज़्म जो हूँ, एक बिना बिका ईमान जो हूँ ||
वो वारिस मुझे बनाते हैं, अपनी नापाक तमद्दन का,
नाराज़ हैं मेरी फितरत पर , मैं उनका भी अरमान जो हूँ ||
वो मुझको समझ कर के दुश्मन, बन बैठे हैं मेरे दुश्मन,
राहों के खारों के लिये मैं, मौत का एक फरमान जो हूँ ||
कर लूँगा सफ़र मैं मंजिल तक, हर ठोकर भी मैं सह लूँगा,
पर, राह नहीं देती दुनिया, मैं उसके लिये तूफ़ान जो हूँ ||
तकदीर से शिकवा कोई नहीं, मालिक से शिकायत है लेकिन,
राही मैं सही, कोई बात नहीं, पर राहों से अंजान जो हूँ ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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