Thursday, October 21, 2010

GHAZAL - 11

       ग़ज़ल

दुनिया  मुझसे  कतराती  है,  शायद  मैं  पागल  लगता  हूँ |
बच  कर  वो  मुझ  से चलते हैं, मैं उनको काजल लगता हूँ ||

अक्सर  लोगों  ने  मुझको  यूँ ,  नफरत  से भरकर देखा है ,
मैं  सावन  की घटा नहीं हूँ ,  बे - मौसम  बादल  लगता  हूँ ||

मेरे  दिल  के  कुछ  ज़ख्मों  ने,  मुझको लहूलुहान किया है,
इसीलिये मैं कुछ उदास हूँ , और  रोता  सा  कल लगता  हूँ ||

मुझे समझना और समझाना, बहुत बोझ सा लगता है अब,
क्योंकि  इन  दोनों  रूपों  में ,  मैं एक झूठा छल  लगता हूँ ||

मेरी  ये  चुभती  खामोशी,   उस  चुभते  गम  से  बेहतर है,
जिसमें  मैं  गर्जन  करता  सा  मैला - खारा जल लगता हूँ ||

तुम भी मुझ से बच कर रहना,  मैं एक  ज़हरीला  कतरा हूँ ,
इसीलिये तो मैं  दुनिया  को, एक कड़वा सा फल लगता हूँ ||


                         रचनाकार - अभय दीपराज

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