Sunday, October 17, 2010

GHAZAL - 4

                   ग़ज़ल

आजकल  मासूम  इन्सां, एक परिंदा बन गया |
जिसका है  मज़बूत  पंजा, वो दरिंदा बन गया ||

जिसका  दामन  भर  के भेजा था  खुदा ने अक्ल से,
अक्ल से  इन्सान  वो  बिलकुल  ही अंधा बन गया ||


लुट  रहा  है आदमी  खुद, आदमी की ज़ात से,
खून करना  आजकल व्यापार- धंधा बन गया ||

आजकल  धन  धर्म  है, ईमान  है, आराध्य  है,
धर्म और सिद्धांत तो अब एक फन्दा बन गया ||

ठोकरें  खाती  है  गलियों  में  यहाँ  इंसानियत,
न्याय  की  आराधना अब एक निंदा बन गया ||

बन के पैगम्बर ज़मीं पर कल कदम जिसने रखा,
आज  वो  शैतान  का  मज़बूत कंधा  बन गया ||

खुद, खुदा ने कर के पैदा जिसको देखा फख्र से ,
आदमी वो अब उसी का,  शत्रु  बन्दा  बन  गया||

आज शर्मिन्दा खुदा खुद होगा इस अपराध पर,
फूल उसका, शूल क्या उससे भी गंदा बन गया ||

          रचनाकार- अभय दीपराज

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