Friday, October 22, 2010

GHAZAL - 14

                     ग़ज़ल

आज  आशा  के  सितारे,  छिप  गए  आकाश में |
घुट  रही  है  ज़िन्दगी  की  साँस, सड़ती लाश में ||

आदमी  पर  पाशविकता  का  शिकंजा  यूँ कसा,
जिस तरह अजगर जकड़ता है किसी को पाश में ||

हँस  रहे 
हैं हम  छिपाने  के  लिए  गम - दर्द को,
किन्तु ये गम घुल गया है हर किसी उच्छवास में ||

हीन  गुरुता  से  हुए गुरु,  चोर  के 
सिर  ताज  है,
आज रक्षक बन के  भक्षक,  डस  रहे  आवास  में ||


बेच  कर  इंसानियत  हम,   हो  गए  यूँ  जानवर,
खून  का  व्यापार  है,  हर वास और अधिवास में ||

दोस्ती  में  दुश्मनी  से,  आज  खतरा  बढ़  गया,
अब तो बस केवल ज़हर है, हास और परिहास में ||

हमने चाहा देव  बनना,  किन्तु  दानव  बन  गए,
घुन  लगा यूँ आदमी की आश 
और अभिलाष में ||

फिर वही युग आ गया है,  धर्म  के  एक युद्ध का,
राज्य  है  धृतराष्ट्र  का  और  धर्म  है  वनवास में ||

सत्यता और धर्म ही बस,  आज  तो  हथियार  है,
जो हमें ले जाएगा
अब,  नाश  से  अ-विनाश  में ||
 
                  रचनाकार - अभय दीपराज

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