ग़ज़ल
दुनिया के कुछ लोगों के लिए मेरी सूरत इतनी काली है |
जिसके जीने पर मातम है और मौत पे एक दीवाली है ||
शायद मैं उन्हीं के हिस्से की साँसों को चुरा कर जीता हूँ,
इसलिए ही शायद पानी का भी, बर्तन उनका खाली है ||
मैं भी अपनी माँ का बेटा, अपनी बहनों का भाई हूँ ,
पर, जाने क्यों मेरे हर हक पर, उनकी आँख सवाली है ||
ये धरती भी, वो अम्बर भी या खुदा उन्हीं का कैसे है ?
कोई तो मुझे ये समझाए, क्यों उनकी नज़र मतवाली है ||
मुझको वो ज़हर कहते है पर , कुछ मेरे भी वो हमदम हैं,
जो मुझे प्यार से कहते हैं - तू फूलों की एक डाली है ||
वो जीने न देंगे मुझको , ये ख्वाब उन्होंने पाला है ,
लेकिन मेरा दिल कहता है ये बात न होने वाली है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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