Monday, October 25, 2010

GHAZAL - 25

                ग़ज़ल

सोचते   थे   ज़माना    सँभल   जायेगा |
वक़्त  के  साथ  इन्सां   बदल   जायेगा ||

आग   चारों   तरफ   यूँ   बरसने   लगी,
लग  रहा  है  ज़हां  सारा  जल  जायेगा  ||

खो  गया  आदमी,  आदमीयत  है  गुम,
नाम  बाकी  है  जो  हमको छल जायेगा ||

दाग  है,  दाग  है,  दाग  है,  हर  कशिश,
एक  ज़हर  है  जो  साँसों में पल जायेगा ||

देखकर  ये  समां,  रो  रहा साज़ -ए-दिल,

न खबर थी क़ि- कल सा न कल आयेगा ||
     
       रचनाकार - अभय दीपराज

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