ग़ज़ल
सोचते थे ज़माना सँभल जायेगा |
वक़्त के साथ इन्सां बदल जायेगा ||
आग चारों तरफ यूँ बरसने लगी,
लग रहा है ज़हां सारा जल जायेगा ||
खो गया आदमी, आदमीयत है गुम,
नाम बाकी है जो हमको छल जायेगा ||
दाग है, दाग है, दाग है, हर कशिश,
एक ज़हर है जो साँसों में पल जायेगा ||
देखकर ये समां, रो रहा साज़ -ए-दिल,
न खबर थी क़ि- कल सा न कल आयेगा ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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