Monday, October 25, 2010

GHAZAL - 21

                       ग़ज़ल

अंजुली  में  ले  के  चलिये  प्यार  अमृत  की तरह |
कीजिये न विकृत, मानवता को, विकृति की तरह ||

क्यों है तुमको...? आज भोली शक्ल से यूँ दुश्मनी,
दोस्त, ये तो शक्ल है एक दोस्त आकृति की तरह ||

राह  पर  चलना  है   अपना   फ़र्ज़,  ये  करते  रहो,
आप क्यूँ यूँ रुक गए हैं ?  आज विस्मित की तरह ||

आप  का  विश्वास  है  यदि  धर्म  के  अस्तित्व  में,
इस  लहर  को  आइये,  फैलायें  जागृति  की तरह ||


भोग  करने  से  बड़ा  सुख,  भोग  बन  जाने में है,
इसमें है एक अनवरत सुख, गूढ़ आवृति की तरह ||

                रचनाकार - अभय दीपराज

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