ग़ज़ल
अंजुली में ले के चलिये प्यार अमृत की तरह |
कीजिये न विकृत, मानवता को, विकृति की तरह ||
क्यों है तुमको...? आज भोली शक्ल से यूँ दुश्मनी,
दोस्त, ये तो शक्ल है एक दोस्त आकृति की तरह ||
राह पर चलना है अपना फ़र्ज़, ये करते रहो,
आप क्यूँ यूँ रुक गए हैं ? आज विस्मित की तरह ||
आप का विश्वास है यदि धर्म के अस्तित्व में,
इस लहर को आइये, फैलायें जागृति की तरह ||
भोग करने से बड़ा सुख, भोग बन जाने में है,
इसमें है एक अनवरत सुख, गूढ़ आवृति की तरह ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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