Monday, October 25, 2010

GHAZAL - 23

                  ग़ज़ल

प्यार  जताकर  धोखा  देना अब  जग  का  दस्तूर है |
पाक जिगर  इन्सां दुनिया  में अब बेहद  मजबूर  है ||

आस्तीन  में  छुरा  छिपाये, चहरे  पर मुस्कान लिये,
बद्जातों   और   गद्दारों   से   हर  कोना    भरपूर  है ||

अधिकारों  की  ताक़त  रखने वालों का मल चाट रहे,
मानवता  मर  गयी,  स्वार्थ से घृणित आत्मा चूर है ||

विष से ज़्यादा हुआ विषैला अमृत  अब  विश्वास का,
धूर्त  और  मक्कारों  का  सिर  आज बहुत मगरूर है ||

हर  रिश्ते  का  सौदा करना अब रिश्तों का धर्म हुआ,
सत्य - धर्म से  मानवता  की  आत्मा  अब  यूँ दूर है ||

मृत्यु दंड का पुरस्कार है, धर्म - सत्य के पथिकों को,
जीवन  उसका  है -  अधर्म  को नमन जिसे मंज़ूर है
||
                   
                   रचनाकार - अभय दीपराज  

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