ग़ज़ल
प्यार जताकर धोखा देना अब जग का दस्तूर है |
पाक जिगर इन्सां दुनिया में अब बेहद मजबूर है ||
आस्तीन में छुरा छिपाये, चहरे पर मुस्कान लिये,
बद्जातों और गद्दारों से हर कोना भरपूर है ||
अधिकारों की ताक़त रखने वालों का मल चाट रहे,
मानवता मर गयी, स्वार्थ से घृणित आत्मा चूर है ||
विष से ज़्यादा हुआ विषैला अमृत अब विश्वास का,
धूर्त और मक्कारों का सिर आज बहुत मगरूर है ||
हर रिश्ते का सौदा करना अब रिश्तों का धर्म हुआ,
सत्य - धर्म से मानवता की आत्मा अब यूँ दूर है ||
मृत्यु दंड का पुरस्कार है, धर्म - सत्य के पथिकों को,
जीवन उसका है - अधर्म को नमन जिसे मंज़ूर है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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