सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम |
मिथिलावासी, जगदम्बा के, उठि-उठि करथि प्रणाम ||
जगजननी के सुन्दर मुखड़ा, सुन्दर मोहक रूप |
लागि रहल छल, जेना बर्फ पर, पसरल भोरक धूप ||
मुग्ध भेलौं और धन्य भेलौं हम, देखि रूप अभिराम |
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||१ ||
मैया सब के आशिष द क, सबके देलखिन्ह नेह |
और कहलथि जे- आइ एलौं हम, नैहर अप्पन गेह ||
अही माटि के बेटी छी हम, इहय हमर अछि गाम |
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||२||
दंग- दंग हम केलों निवेदन- जननी ई उपकार करू |
धर्मक नैया डोलि रहल अछि, मैया बेड़ा पार करू ||
ओ कहलथि- हटि जाउ पाप सँ, नीक भेंटत परिणाम |
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||३||
एहि के बाद शक्ति ई भखलनि- हम अहाँ के माली छी |
लेकिन हमहीं सीता - गौरी, हमहीं दुर्गा-काली छी ||
जेहन कर्म रहत ओहने फल, करब अहाँ के नाम |
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||४||
आखिर में जगदम्बा-जननी, सीता-रामक रूप लेलाह |
और प्रकाशपुंज बनिकयओ हमरे सब में उतरि गेलाह ||
देलथि ज्ञान जे - एक शक्ति के, छी हम ललित-ललाम ||
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||५||
बाबू ! अब त बिसरि जाउ ई- भेद - भाव के राग |
बेटा - बेटी, ऊँच- नीच और छल - प्रपंच के दाग ||
नहिं त आखिर अपने भुगतव, अपन पाप के दाम |
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम ||६||
सिंह - पीठ पर बैसल अम्बा, अयलथि मिथिला धाम |
मिथिलावासी, जगदम्बा के, उठि-उठि करथि प्रणाम ||
रचनाकार- अभय दीपराज
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