अभय कान्त झा दीपराज के मैथिली ग़ज़ल -
ग़ज़ल
मोन प्रपंच पाप सँ दूषित, भाषण जन - समुदाय के |
कोना एहन नायक समाज में, परचम बनता न्याय के ||
कथनी में आदर्श, कलंकित करनी सँ नफरत के पात्र,
कोना समाज एहन व्यक्ति के, शत्रु कहय अन्याय के ||
किछु दिन संभव अछि चालाकी किन्तु अंत नहिं नीक एकर,
सदा अंत में हारव निश्चित, दानव के पर्याय के ||
धर्म, सत्य और न्याय-मनुजता, नैं हारल, नैं हारि सकत,
झूठ नैं कखनों बना सकत क्यों, अपन सबहक ऐहि राय के ||
धर्म अपन अछि - अपना कारण अपन वंश के मान बढय,
कहि नैं पावय क्यों कपूत के जननी अपना माय के ||
आदर्शक पथ पकडि चलू और करैत रहू कर्त्तव्य अपन,
लक्ष्य इहय बस सर्वोत्तम अछि, बुझू हमर अभिप्राय के ||
रचनाकार - अभय दीपराज