Monday, October 25, 2010

GHAZAL - 24

     ग़ज़ल - 24

आजकल धनवान ही भगवान् है |
जानवर, धन के बिना, इंसान है ||

खूबियाँ अब और कोई कुछ नहीं,
देव बनकर पूज रहा, धनवान है ||

बिक रहा है न्याय भी, बाज़ार में,
जितना धन है पास, उतना मान है ||

अक्ल की ताक़त यहाँ अब कुछ नहीं,
पैसे वाला,   मूर्ख भी,  विद्वान् है ||

रो रहा अब ज्ञान का साधक यहाँ,
धन से शासन कर रहा अज्ञान है ||

जल रहा है भूख से और धूप से,
आदमीयत पर जिसे, अभिमान है ||

धन बना है धर्म और आराध्य अब,
धर्म सहता हर घड़ी, अपमान है ||

आज युग गाता है केवल मंत्र ये -
आज धन ही ज्ञान और सम्मान है ||

रचनाकार- अभय दीपराज

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