ग़ज़ल - 24
आजकल धनवान ही भगवान् है |
जानवर, धन के बिना, इंसान है ||
खूबियाँ अब और कोई कुछ नहीं,
देव बनकर पूज रहा, धनवान है ||
बिक रहा है न्याय भी, बाज़ार में,
जितना धन है पास, उतना मान है ||
अक्ल की ताक़त यहाँ अब कुछ नहीं,
पैसे वाला, मूर्ख भी, विद्वान् है ||
रो रहा अब ज्ञान का साधक यहाँ,
धन से शासन कर रहा अज्ञान है ||
जल रहा है भूख से और धूप से,
आदमीयत पर जिसे, अभिमान है ||
धन बना है धर्म और आराध्य अब,
धर्म सहता हर घड़ी, अपमान है ||
आज युग गाता है केवल मंत्र ये -
आज धन ही ज्ञान और सम्मान है ||
रचनाकार- अभय दीपराज
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