ग़ज़ल
फिजाओं के किस्से हैं बाकी चमन में |
खारों के मेले हैं गुल से बदन में ||
लुटा हूँ, मिटा हूँ, मैं एक आदमी हूँ,
ज़माने ने चेहरा छुपाया कफ़न में ||
मेरे दिल के कतरे, मेरे दोस्तों ने,
भेजे हैं काँटों के दस्ते, चमन में ||
ये घर है, ये दर है, ये आँगन है मेरा,
बना कब्र मेरी, हुआ हूँ दफ़न मैं ||
सूरत से हर आदमी, आदमी है,
मगर एक कातिल, छुपा हर बदन में ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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