Wednesday, November 3, 2010

GHAZAL - 55

                ग़ज़ल

फिजाओं के किस्से हैं बाकी चमन में |
खारों  के  मेले  हैं  गुल  से  बदन  में  ||

लुटा हूँ,  मिटा हूँ,  मैं  एक  आदमी  हूँ,
ज़माने  ने  चेहरा  छुपाया  कफ़न  में ||

मेरे  दिल  के  कतरे,  मेरे  दोस्तों  ने,
भेजे   हैं  काँटों  के  दस्ते,   चमन  में ||

ये घर है,  ये दर है,  ये आँगन है मेरा,
बना  कब्र  मेरी, हुआ   हूँ   दफ़न   मैं ||

सूरत   से  हर  आदमी,   आदमी  है,
मगर एक कातिल,  छुपा हर बदन में ||

रचनाकार - अभय दीपराज

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