Wednesday, November 3, 2010

GHAZAL - 53

                      ग़ज़ल
जीने  के  काबिल  न  छोड़ा,  दोस्तों  ने  लूट  कर |
दिल  बिखर  कर  रह  गया  है,  ठोकरों से टूटकर ||

जब मिले तो हमनशीं, हमराज़ और हमदम कहा,
दो   घड़ी   के   बाद   वो  ही  चल  दिए  हैं  रूठकर ||

दर्द  है  दिल  में  मगर  दिल  बे-जुबां  है,  इसलिए,
कह  नहीं  सकते  कि-  कितना रो चुके हैं फूटकर ||

प्यार  की  हर  रौशनी,  अब  तो  मुझे  धोखा  लगे,
गम  ज़हां  ने  भर  दिया  है  यूँ  जिगर में कूटकर ||

क़ैद   जैसी   एक   सज़ा   है   ज़िन्दगी   मेरे   लिए,
जां  ये  मेरी  जिससे  जाना   चाहती   है   छूटकर ||

                 रचनाकार - अभय दीपराज

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