ग़ज़ल
जीने के काबिल न छोड़ा, दोस्तों ने लूट कर |
दिल बिखर कर रह गया है, ठोकरों से टूटकर ||
जब मिले तो हमनशीं, हमराज़ और हमदम कहा,
दो घड़ी के बाद वो ही चल दिए हैं रूठकर ||
दर्द है दिल में मगर दिल बे-जुबां है, इसलिए,
कह नहीं सकते कि- कितना रो चुके हैं फूटकर ||
प्यार की हर रौशनी, अब तो मुझे धोखा लगे,
गम ज़हां ने भर दिया है यूँ जिगर में कूटकर ||
क़ैद जैसी एक सज़ा है ज़िन्दगी मेरे लिए,
जां ये मेरी जिससे जाना चाहती है छूटकर ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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