ग़ज़ल
मेरे बाग़ के अमन को किसकी नज़र ? लगी |
गुलज़ार दर - चमन को किसकी नज़र लगी ||
घायल हुयी है रात से कैसे ? मेरी सहर,
गुलशन को, गुल को क्यों न मेरी ? ये उम्र लगी ||
शैतान बन गया ये मेरा खून किस ? तरह,
मेरी डगर ही गम को क्यों ? रहगुज़र लगी ||
अफ़साना क्यों ? बनी है मेरी हसरत-ए-रिफ़अत,
मेरे ही दिल की बात उन्हें क्यों ? ज़हर लगी ||
हश्ती है रक्शे-बिस्मिल, हैरान साज़-ए-दिल,
मेरे बाग़ की खिज़ां को किस्से ? खबर लगी ||
रचनाकार- अभय दीपराज
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