Thursday, November 4, 2010

GHAZAL - 60

                    ग़ज़ल

आग  से  था  खेलने  का शौक पर हम  डर गये |
मौत  को  जब  सामने देखा तो खुद ही मर गये ||

उम्र  भर  जो  साथ  देने  के  लिए  घर  से  चले,
शाम ही जो होने आयी,  थक के अपने घर गये ||

रोज़  सुबहो-शाम  मिट्टी,  खून  से  भींगी  रही,
पर हुआ बलिदान जिनका, फालतू वो सर गये ||

बोलियाँ   देते  रहे  जो  हमको  लड़ने  के  लिए,
सामने  दुश्मन दिखा तो खुद किनारा कर गये ||

भाग्य ही शायद बुरा था,  आदमी की ज़ात का,
जो  भी  बोया  पेड़  उसने,  उसके पत्ते झड गये ||

             
              रचनाकार- अभय दीपराज

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