ग़ज़ल
दुआयें दो, दुआयें दो, ज़माने को दुआये दो |
तोड़े न दिलों को ये बदल जाये दुआयें दो ||
ये उसकी गर्मजोशी, खून की ये प्यास क्यों आखिर,
ये इसका मर्ज़ घट जाये, इसे ऐसी दवायें दो ||
भले दिल तोड़ कर उसको बनाता है बुरा क्यों ये,
कहो इससे कि- शोलों को न तुम ऐसे हवायें दो ||
बाकी हैं अभी कुछ गुल, खिज़ां जिन तक नहीं पहुँची,
उन्हें आबाद मंजिल के लिये मिलकर सदायें दो ||
ये दुनिया इस तरह जल जायेगी, इन ज़र्द शोलों से,
न यूँ हैवान बन हैवानियत को तुम अदायें दो ||
रचनाकार - अभय दीपराज
दुआयें दो, दुआयें दो, ज़माने को दुआये दो |
तोड़े न दिलों को ये बदल जाये दुआयें दो ||
ये उसकी गर्मजोशी, खून की ये प्यास क्यों आखिर,
ये इसका मर्ज़ घट जाये, इसे ऐसी दवायें दो ||
भले दिल तोड़ कर उसको बनाता है बुरा क्यों ये,
कहो इससे कि- शोलों को न तुम ऐसे हवायें दो ||
बाकी हैं अभी कुछ गुल, खिज़ां जिन तक नहीं पहुँची,
उन्हें आबाद मंजिल के लिये मिलकर सदायें दो ||
ये दुनिया इस तरह जल जायेगी, इन ज़र्द शोलों से,
न यूँ हैवान बन हैवानियत को तुम अदायें दो ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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