ग़ज़ल
हम ज़मीं पर हैं सितारों की बात करते हैं |
जिद है जीने की मगर साँस - साँस मरते है ||
ख्वाब में आज भी है रंगीनी और बदरंग ये ज़माना है,
ख्वाब ये टूट तो न जायेंगे, इस हकीकत से लोग डरते हैं ||
बस यही राह है बसर की अब, हर किसी से हमें निभाना है,
ज़िन्दगी बस इसी से ज़िंदा है- ख्वाब में जो गुलाब झरते हैं ||
खून जलता है पर मुक़द्दर में आज बस बेबसी के आंसू हैं,
ये तो तकदीर है हमारी कि - गम के सागर में हम उतरते हैं ||
डूब कर आग में ही जीना है, दर्द सहकर ही मुस्कुराना है,
भूमिका जो मिली मुक़द्दर से, हम तो बस वो ही स्वांग भरते हैं ||
रचनाकार- अभय दीपराज
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