ग़ज़ल
खून में डूबा है इन्सां, हाथ में तलवार है |
एक पागलघर बना यूँ, आज का संसार है ||
धर्म का ये अर्थ है अब, है ये मज़हब की नज़र,
ये तो अब गद्दी नशीनी के लिए हथियार है ||
आज हम औलाद पैदा कर रहे हैं, इसलिए -
क्योंकि - ये रंगीन दुनिया, माँस का बाज़ार है ||
पेट भरने के लिए हैं, आज रिश्तेदारियाँ,
हर कोई रिश्ता यहाँ पर, आज एक व्यापार है ||
मैं भी हूँ शायद फरेबी, और फरेबी आप हैं,
झूठ है ये- मुझको तुमसे, तुमको मुझसे प्यार है ||
जा रही है ये नज़र, इस छोर से, जिस छोर तक,
भूल कर कर्त्तव्य, सबको याद बस, अधिकार है ||
आज आदम गर कहीं तू है ? तो आकर देख ले,
क्या तेरे अरमान थे ? और क्या तेरा परिवार है ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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