Sunday, October 24, 2010

GHAZAL - 18

                     ग़ज़ल

खून  में  डूबा  है  इन्सां,  हाथ   में   तलवार   है |
एक   पागलघर   बना   यूँ,  आज  का  संसार है ||

धर्म  का  ये अर्थ है अब,  है ये मज़हब की नज़र,
ये  तो  अब  गद्दी नशीनी   के  लिए  हथियार है ||

आज  हम  औलाद  पैदा  कर  रहे हैं,   इसलिए -
क्योंकि -   ये रंगीन दुनिया,  माँस का बाज़ार है ||

पेट   भरने   के   लिए   हैं,  आज   रिश्तेदारियाँ,
हर  कोई  रिश्ता  यहाँ पर,  आज एक व्यापार है ||

मैं  भी  हूँ  शायद  फरेबी,  और  फरेबी  आप  हैं,
झूठ है ये- मुझको तुमसे, तुमको मुझसे प्यार है ||

जा रही है ये नज़र, इस छोर से, जिस छोर तक,
भूल कर कर्त्तव्य, सबको याद बस,  अधिकार  है ||

आज आदम गर कहीं तू है ?  तो आकर देख ले,
क्या तेरे अरमान थे ? और क्या तेरा परिवार  है ||


              रचनाकार - अभय दीपराज 

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