ग़ज़ल
आओ, फिर आवाज़ दें हम, धर्म के पुरुषार्थ को |
फिर से धरती पर बुलायें, सत्य को, परमार्थ को ||
आज धरती पर ग्रहण है, पाप और अन्याय का,
आओ फिर दिल से पुकारें, कृष्ण को और पार्थ को ||
रात भर का है अन्धेरा, पाप का साम्राज्य ये ,
याद रख्खो, मत भुलाओ, इस अमर शास्त्रार्थ को ||
हम मनुज हैं और मनुज रहना हमारा धर्म है,
आओ, हम विश्वास से, दोहरायें इस भावार्थ को ||
मत कहो, ये धर्म और ये सत्य अब निःसार है,
आत्माओं में उतारें, आओ, इस दिव्यार्थ को ||
विश्व के कल्याण की, आओ, करें हम कामना,
आओ, होली में जला दें, पाप को और स्वार्थ को ||
जाग जाये यदि मनुजता, विश्व ये कुंदन बने,
आओ गायें, मिल के इस पावन-अमर चरितार्थ को ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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