Sunday, October 24, 2010

GHAZAL - 17

                      ग़ज़ल

आओ,  फिर  आवाज़  दें  हम,  धर्म के पुरुषार्थ को |
फिर  से  धरती  पर  बुलायें, सत्य को, परमार्थ को ||

आज  धरती  पर ग्रहण है,  पाप  और  अन्याय का,
आओ फिर दिल से पुकारें,  कृष्ण को और पार्थ को ||

रात   भर   का  है  अन्धेरा,   पाप का साम्राज्य ये ,
याद रख्खो,  मत भुलाओ,  इस अमर  शास्त्रार्थ को ||

हम  मनुज  हैं  और  मनुज  रहना  हमारा  धर्म  है,
आओ,  हम  विश्वास  से,  दोहरायें  इस भावार्थ को ||

मत  कहो,   ये  धर्म  और  ये  सत्य अब निःसार है,
आत्माओं   में   उतारें,  आओ,  इस  दिव्यार्थ   को ||

विश्व   के   कल्याण  की,  आओ,  करें हम कामना,
आओ,  होली  में  जला  दें, पाप को और स्वार्थ को ||

जाग  जाये  यदि  मनुजता,  विश्व  ये  कुंदन  बने,
आओ गायें, मिल के इस पावन-अमर चरितार्थ को ||

                 
                   रचनाकार - अभय दीपराज

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