Friday, November 5, 2010

GHAZAL - 68

                ग़ज़ल

कब तक जियेंगे ?  दाग से लड़ते हुए ये लोग |
पागल  हुये  हैं  दर्द  को  सहते  हुये  ये  लोग ||

दिल  को  दिया है धोखा  और  मुस्कुरा लिये,
बू  से   भरी  लहर  में  बहते   हुये   ये   लोग ||

कितने हैं ये बहादुर...?  जो  खुद  से लड़ रहे,
खुले  आसमां  के  नीचे  रहते  हुये  ये  लोग ||

ज़िल्लत  की  राह  चुनकर,  उसे छोड़ते नहीं,
इज्ज़त  बहुत  बड़ी  है,  कहते  हुये  ये लोग ||

खण्डहर नहीं है मानते ये खुद को आज तक.
पानी  से  और  हवा  से  ढहते  हुये  ये  लोग ||

रचनाकार - अभय दीपराज 

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