ग़ज़ल
कब तक जियेंगे ? दाग से लड़ते हुए ये लोग |
पागल हुये हैं दर्द को सहते हुये ये लोग ||
दिल को दिया है धोखा और मुस्कुरा लिये,
बू से भरी लहर में बहते हुये ये लोग ||
कितने हैं ये बहादुर...? जो खुद से लड़ रहे,
खुले आसमां के नीचे रहते हुये ये लोग ||
ज़िल्लत की राह चुनकर, उसे छोड़ते नहीं,
इज्ज़त बहुत बड़ी है, कहते हुये ये लोग ||
खण्डहर नहीं है मानते ये खुद को आज तक.
पानी से और हवा से ढहते हुये ये लोग ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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