Friday, November 5, 2010

GHAZAL - 67

ग़ज़ल

प्यार   जब   लुट   गया   ज़माने   में |
हो  कशिश  किस  तरह ?  फ़साने में ||

मज़हब-ए-दिल का अब ये मज़हब है,
है    सुकूं    फूल     को    सताने    में ||

जिसकी   उम्मीद  थी   न  हसरत  है,
है    वही    मोड़    अब    फ़साने   में ||

बे-वफाई       भी       होशमंदी       है,
बच   सके   कुछ   अगर  न जाने में ||

जो   हुयी   भूल   वो   हुयी   क्यूँ  कर,
दम    नहीं    कोई    इस   बहाने  में ||

लुट   गया   जो,   न   लौट   पायेगा,
देख   क्या   रह   गया   खजाने   में ||

रचनाकार - अभय दीपराज

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