ग़ज़लप्यार जब लुट गया ज़माने में |
हो कशिश किस तरह ? फ़साने में ||
मज़हब-ए-दिल का अब ये मज़हब है,
है सुकूं फूल को सताने में ||
जिसकी उम्मीद थी न हसरत है,
है वही मोड़ अब फ़साने में ||
बे-वफाई भी होशमंदी है,
बच सके कुछ अगर न जाने में ||
जो हुयी भूल वो हुयी क्यूँ कर,
दम नहीं कोई इस बहाने में ||
लुट गया जो, न लौट पायेगा,
देख क्या रह गया खजाने में ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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