Sunday, October 31, 2010

GHAZAL - 36

ग़ज़ल

ससे  बड़ा  ज़हां  में,   इंसानियत   का   रिश्ता |
है  रौशनी  ज़हां  की,   इंसानियत   का  रिश्ता
||

दुनिया  के  इस  चमन  में, फूलों  से  खूबसूरत,
तोहफा है एक खुदा का,  इंसानियत का रिश्ता ||

बनकर  के   धर्म  जिसने,  हमें आदमी बनाया,
वो  राह-ए-रौशनी   है,  इंसानियत  का  रिश्ता ||

जोड़ा है जिसने उससे  और  तुमसे मेरे दिल को,
वो  प्यार  की  कड़ी  है,  इंसानियत  का रिश्ता ||

ये  दास्ताँ  नहीं  है,  इस  सच  को  याद  रखना,
है   दीपराज-सूरज,   इंसानियत    का    रिश्ता ||

              रचनाकार - अभय दीपराज

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