ग़ज़ल
ससे बड़ा ज़हां में, इंसानियत का रिश्ता |
है रौशनी ज़हां की, इंसानियत का रिश्ता ||
दुनिया के इस चमन में, फूलों से खूबसूरत,
तोहफा है एक खुदा का, इंसानियत का रिश्ता ||
बनकर के धर्म जिसने, हमें आदमी बनाया,
वो राह-ए-रौशनी है, इंसानियत का रिश्ता ||
जोड़ा है जिसने उससे और तुमसे मेरे दिल को,
वो प्यार की कड़ी है, इंसानियत का रिश्ता ||
ये दास्ताँ नहीं है, इस सच को याद रखना,
है दीपराज-सूरज, इंसानियत का रिश्ता ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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